रविवार, 7 जुलाई 2013

उधार

उधारी एक अइसन  शब्द  बा की सबका के कईले बा उघार
छोटका हो चाहे बड़का चाहे मझिला हो या सरकार

पहिले त हमनी गरीबन के जिए के रहे हथियार
रोज रोज मौगी लियली  जा उधार, महिना मिलला पर मरद  कैले  चुकता उधार
चाहीं या न चाहीं फेर लेवहीं के पड़ी उधार, इहे कहाले  महिन्वारी उधार
 परिवार चलावे के इहे नूं बा हंथियार

पुरनिया लोग सभे खाली नून, तेल मरीचे लेत  रहे उधार 
गाँव में साव  जी किहाँ अतने चीज के ही रहे सुमार
अब त  सब जिनिस मिलता उधार
काहे की साव  जी बन गैले  बड़का दुकानदार          

लड़कपन में सुनले रहीं जा 
"राजिंदर बाबु राजा भईले  कानून कइले जारी,
बड़का बड़का लोग चलइन्हें  कुदार
खाए के त  दाना न मिली खेती में ना अन्नाज
 तब त लेवहीं के पड़ी उधार"

सूराज के बाद संसद बन गइल, गाँधी टोपी वाला नेता आ गइलन
बहस खातिर पंडित और पटेल,  बाकि जाना ओंघाते  रह गइलन
धीरे धीरे  सब नेता हो गइलन  भ्रस्टाचारी,  बढ़ा  दिहलन उधारी के  बाजारी

अब छोटका त  छोटका मंझिला आ बड़का भी शुरू क दीहलन लेहल उधार
छोटका लिहेन दाल चावल आंटा मंझिला लिहेन फटफटिया उधार
बडकु बाबु लोग ले तरन सवख से बड़ी गाड़ी और भवन भी उधार
चुकावे के कवनो  झंझट  न  बा,  "इ ऍम आइ" (EMI)  बा नूं  चूकाइ  मालिक या सरकार

केतना ख़ुशी के बात बा आपना गांवें  में झांकी ना, छोटका किसान बा खुश्हाल 
बिज खाद ट्रेक्टर, थरेसर सब मिलता उधारी  फसल मरला पर मदद भी सरकारी
बाह रे उधारी भैया बाह रे उधारी   

अब तनी  हई  न देखीं  कोख भीनु मिले लागल उधारी
अब त  मौगीअनों  के  चकर में फंशा दिहलस उधारी
बचवे नु चाहीं, काहे के आपन फिगर के करेब ख़राबी 
बाजार में मिलता सरोगेट (surrogate) मदर ले लीं उधारी 
9 महीना बाद 2-4 लाख और बाकि ख़र्चा महिन्वारी

पईसा खातीर कोख बेच दिहली आपन देश के नारी
केहू के मिलल घर के चिराग त केहू के भरल अलमारी
एक बात निमन भइल जात पात  के भेद मिटव्लस  इ कोख उधारी 
और बड़कन के चलते बहुत गरीब के दूर भइल उधारी

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