मंगलवार, 2 जुलाई 2013

अधिकार

चारो और लड़ाई बा  अधिकार के
कर्तब्य के चिंता नइखे केहू समझदार के
जहाँ देखि तहेन लोग अधिकार  मांगता
मौलिक अधिकार  संवैधनिक अधिकार औरो न त लठमार अधिकार
इन्कलाब जिंदाबाद मुर्दाबाद तक बा खाली अधिकार खातिर
लेकिन सुनी सभे  बुझ सूझ के कर्तब्य के काइल बा गैरहाजिर

कर्तब्य करे के कहीं  तो जन्ता लोग राउर सर फोड़ दिहें जा
झुठहूँ  अधिकार सरकार से मांगीं त नेता बना दिहें जा

अधिकार के आवाज़ उठा के देखीं केतना समाज में राउर इज्जत बढ़ जाई
और गलतियो से कहीं अपने कर्म करे के कह देब  त उत्तार  दिहल जाई

अधिकार के अतना बड़ा संस्था बा संबिधान के बनावल बा
पैसा के भरमार बा, मानवाधिकार संस्था के नाम बा
लुटे के त सभे  जानेला, संस्था बना के चाहे आयोग बना के

एगो कर्तब्य संस्था बना के देखल  जव
पैसो आपण  मिह्नातो आपन के केतना पावता                           
तनी देखीं त केतना मजा अवता

एक बार सोंच के देखि जा आपण कर्तब्य क के देखीं जा
माँ  बाप के प्रति समाज गाँव के प्रति राज्य और राष्ट्र के प्रति
नेतागिरी के लालच छोडके तनी सीखीं जा सिखाई जा

केकरा प्रति का करतब बा, कम से कम  घर में ही  करी जा
काम बड़ा सुभ बा आजे शुरू कर दी जा
देश तथा राज्य खातिर कुछ तो काम कईल  जाव




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